वर्तमान समय में बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडू के अलावा इसकी खेती पंजाब और हरियाणा में भी की जा रही है। पंजाब में 8022 हेक्टेयर के क्षेत्र पर अमरूद की खेती की जाती है और औसतन पैदावार 160463 मैट्रिक टन है। इसके साथ ही भारत की जलवायु में उगाये गए अमरूदों की मांग विदेशों में बढ़ती जा रही है, जिस वजह से इसकी खेती व्यापारिक रूप से पूरे भारत में भी होने लगी है। अमरुद का स्वाद खाने में अधिक स्वादिष्ट और मीठा होता है। अमरुद में कई औषधीय गुण भी होते है। जिस वजह से इसका उपयोग दातों से संबंधी रोगों को दूर करने में किया जाता है। बागवानी में अमरूद का अपना एक अलग महत्व है। अमरूद फायदेमंद, सस्ता और हर जगह मिलने के कारण इसे गरीबों का सेब भी कहा जाता है। यह विटामिन सी, विटामिन बी, कैल्शियम, आयरन और फास्फोरस से समृद्ध होता है। अमरुद से जूस, जैम, जेली और बर्फी भी बनायीं जाती है। अमरुद के फल की ठीक से देख-रेख कर अधिक समय भंडारित कर सकते हैं। किसान भाई अमरुद की एक बार बागवानी कर लगभग 30 वर्ष तक पैदावार ले सकते हैं। किसान एक एकड़ में अमरूद की बागवानी से 10 से 12 लाख रूपए सालाना कमाई आसानी से कर सकते हैं। अगर आप भी अमरूद की बागवानी करने का मन बना रहे हैं तो ट्रैक्टरगुरु की यह पोस्ट आपके लिए काफी महत्वपूर्ण है। इस पोस्ट में आपको अमरुद की खेती कैसे करें इसके बारे में जानकारी दी जा रही है।
भारतीय जलवायु में अमरूद इस कदर घुल मिल गया है कि इसकी खेती भारत के किसी भी क्षेत्र में अत्यंत सफलतापूर्वक आसानी से की जा सकती है। इसका पौधा अधिक सहिष्णु होने के कारण इसकी खेती किसी भी प्रकार की मिट्टी एवं जलवायु में बड़ी ही आसानी से की जा सकती है। अमरुद का पौधा उष्ण कटिबंधीय जलवायु वाला होता है। इसलिए इसकी खेती सबसे अधिक शुष्क और अर्ध शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों में की जाती है। अमरुद के पौधे सर्द और गर्म दोनों ही जलवायु को आसानी से सहन कर लेते है। किन्तु सर्दियों के मौसम में गिरने वाला पाला इसके छोटे पौधों को हानि पहुंचाता है। इसके पौधे अधिकतम 30 डिग्री तथा न्यूनतम 15 डिग्री तापमान को ही सहन कर सकते है, तथा पूर्ण विकसित पौधा 44 डिग्री तक के तापमान को भी सहन कर सकता है।
अमरुद के पौधें की रोपाई के दो से तीन वर्ष बाद पौधे में फल लगने शुरू हो जाते है। फलो की तुड़ाई पूरी तरह से पकने के बाद करें। इसका पूर्ण विकसित पौधा वर्ष में दो से तीन बार पैदावार दे देता हैं। जब इसके पौधों पर लगे फलो का रंग हल्का पीला दिखाई देने लगे उस दौरान उनकी तुड़ाई कर लेनी चाहिए। फलों की तुड़ाई के बाद फलों को साफ करें, उन्हें आकार के आधार पर अलग करें और पैक कर लें। इसे तुड़ाई के तुरंत बाद बाजार में बेचने के लिए भेज देना चाहिए। इसे पैक करने के लिए कार्टून फाइबर बॉक्स या अलग अलग आकार के गत्ते के डिब्बे या बांस की टोकरियों का प्रयोग करना चाहिए।